लघुकथा
पलाश के फूल

एक खूबसूरत राजकुमारी थी। एक बार वह आखेट के दौरान सखियों के संग प्यास बुझाने जंगल में झील के किनारे गयी। वहीं उसने देखा उसे और प्यार हो गया उससे। वह था ही इतना खूबसूरत। बिल्कुल किसी युवराज - सा। दोनों की आँखे मिलीं। ऐसा लगा जानते हैं एक - दूजे
को जाने कब से। कई मुलाकातें हुईं। प्यार परवान चढ़ा , मगर वो मिल न सके। प्रेमी कहीं गुम हो गया या जाने दूर चला गया। राजकुमारी पागलों की तरह उसे ढूंढती फिर रही है। जंगल , झाड़ नंगे पांव। तीव्र विरह - वेदना से उसकी आँखों से आंसू गिर रहे है , अनवरत। दग्ध हृदय से वह पुकार रही है - कहां हो .... तुम कहां हो ! उसके झरझर गिरते आंसू में इतनी ताब है , हृदय में इतनी वेदना है कि जहां - जहां उसके आंसू गिरे , वहां पलाश के पेड़ उग आये।
जब यादों का मौसम आता है , बसंत आता है। पेड़ के सारे पत्ते उसके याद में झर जाते है और नग्न पलाश वृक्ष राजकुमारी की आंसुओ से बने लाल फूलों से लद जाते है। शायद इसलिए कि जानेवाले इन यादों के फूल को देखकर लौट आये और राजकुमारी के अतृप्त आत्मा को सुकून मिल जाए। जब भी पलाश की फूल देखती हूँ , अहसास होता है कि किसी के आंसुओं का परिणाम है पलाश।
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